रोहतक, 15 जुलाई। आयुर्वेद में एक पुरानी चिकित्सा पद्धति है रक्तमोक्षण। इसमें आमतौर पर आर्थराइटिस से पीड़ित मरीज के शरीर के दूषित खून को बाहर निकाला जाता है। इसकी कई विधियां हैं, जिसमें सबसे प्राचीन और प्रचलित विधि है सिंगी लगाना। मरीज के पैर के तलवों में पहले पशुओं के सिंग से बने औजार से रक्तमोक्षण किया जाता था, लेकिन अब पीतल की धातु का इस्तेमाल किया जाता है।
आजकल यह पद्धति एक बार फिर से प्रचलन में आ गई है। हालांकि पुराने समय में जब लोग पैदल ज्यादा चलते थे, तो उनके पैरों में गठिया रोग हो जाता था, तो इस विधि से शरीर से दूषित रक्त निकाला जाता था और दावे किए जाते हैं कि उससे मरीज ठीक भी हो जाता था। अब इस तरह की समस्या सामने आने पर लोग ऑपरेशन कर आते हैं, लेकिन अभी भी कुछ लोगों का मानना है कि सिंगी लगाने से बीमारी दूर हो जाती है। सिंगी कैसे लगाई जाती है और इसके लगाने से शरीर पर क्या असर पड़ता है, इसको लेकर हमने सिंगी लगाने वाले राजसिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि यह विद्या उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी और सैकड़ों सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी वे यह काम करते आ रहे हैं। शरीर पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो उसके बारे में उन्होंने कहा कि आज तक उनके सामने ऐसी समस्या कभी नहीं आई और ना ही उन्होंने कभी सुना कि सिंगी लगाने से किसी को दिक्कत हुई हो। लेकिन हां इससे मरीज ठीक जरूर हो जाता है। वहीं, जो व्यक्ति सिंगी लगवा रहा था, उसका नाम योगेंद्र सिंह है। उसने बताया कि उनके दोनों पैरों में बहुत तेज दर्द होता है और अगर 10 मिनट बाद पैरों को पानी में नहीं डालते हैं तो बहुत तेज जलन शुरू हो जाती है।
इसके लिए उन्होंने काफी दवा
इयां भी ट्राई की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अब किसी ने सिंगी के बारे में बताया तो यह भी ट्राई कर रहे हैं, देखते हैं कि इसका कितना असर होता है। उन्होंने बताया कि अब तो बाबा रामदेव भी इस पर रिसर्च कर रहे हैं और बाकायदा पतंजलि में सिंगी लगाने का काम भी शुरू हो चुका है और हरियाणा, राजस्थान आदि प्रदेशों से सिंगी लगाने वाले वहां पर काम भी कर रहे हैं और उनको शिक्षा भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति एक बार फिर से प्रचलन में आ गई है।